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अगर कहीं मैं नेता होता कविता

अगर कहीं मैं नेता होता कविता

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अगर कहीं मैं नेता होता कविता

अगर कहीं मैं नेता होता

खादी कुरता धुला पहनता
हाथ जोड़कर वोट मांगता
सच्ची बात सुनो कहता हूँ
अगर कहीं मैं नेता होता

खुल्लम खुल्ला झूठ बोलता
वादा पूरा कभी न करता
उसको तो हरदम पिटवाता
जिस पर मेरा मन गुस्साता

धर्म बेचता, कर्म बेचता
बरसों तक ईमान बेचता
भाई भाई को लडवाकर
अपना स्वारथ पूरा करता

नहीं नहीं मैं झूठ कह गया
जितनी बात कही हैं मैंने
सबका बिलकुल उल्टा करता
अगर कहीं मैं नेता होता

 

अगर कहीं मैं नेता होता कविता
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